Sunday 2 December 2012

क्रिसमस @ कमरुनाग

कमरुनाग – हिमाचल की हसीन वादियों के गर्त में छुपा एक अनमोल रत्न. शानदार घने जंगल के बीच से गुजरते हुए, सहसा ही एक छोटे से खुले स्थान में इस झील के दर्शन करना अपने आप में एक अलौकिक अनुभव है. तो मैं और मेरा दोस्त बाली निकल पड़े इस छुपे हुए खजाने की तलाश में. मंडी बस स्टेशन पर आते ही, थोड़ी देर में रोहांडा के लिए बस मिल गयी. रोहांडा, सुंदर नगर – करसोग मार्ग पर बसा एक छोटा सा गाँव है जहाँ से कमरूनाग तक 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा से पहुँचा जा सकता है.
 
सुंदर नगर से रोहांडा तक का मार्ग कुछ अदभुत प्राकृतिक नज़ारे पेश करता है जो मैंने अपनी पहाड़ी यात्राओं में पहले कभी नहीं देखे थे. ऐसे में मुझे कई बार बस से उतरकर पैदल सफ़र करने का मन करता था, पर समय एक बड़ी बाधा थी. वैसे कुदरत के नज़ारों का भरपूर आनंद लेने का जो मज़ा पैदल सफ़र करने में है वो किसी और चीज़ में नहीं, और ये मैं मजाक में नहीं बल्कि अपनी कुछ पिछली छोटी – छोटी पैदल यात्राओं के अनुभव से कह सकता हूँ.
 
पैदल चलते वक्त हम न सिर्फ कुदरत के विराट स्वरुप का आनंद लेते हैं, बल्कि यह हमारा परिचय प्रकृति के उस अनमोल रूप से भी करवाता है जिसका स्वाद हम अन्यथा नहीं चख पाते, जैसे की राह में दिखने वाले पशु / पक्षी / कीट और उनके मधुर स्वर, मीठे पानी के कुदरती जल स्रोत / नदियाँ / झीलें / झरने, अचंभित कर देने वाले पेड़ / पौधे और उन पर लगे मनमोहक फूल और मीठे फल जो आपको एक पल रुकने पर मजबूर कर देते हैं, भोले – भाले पहाड़ी लोग और उनका रहन – सहन, छोटे – छोटे पहाड़ी रास्ते जिन पर चलकर शरीर में एक नई उर्जा का संचार होता है और अंत में इन सभी यादों को सहेजे रखने के लिए इन्हें कैमरे में कैद करने की लालसा. ये सब न सिर्फ कुदरत की इस अदभुत रचना को नजदीक से जानने की प्रक्रिया होती है, बल्कि प्रकृति और अपने बीच के रिश्ते को समझने और अनुभव करने का भी बहुत अच्छा अवसर होता है.


मंडी से निकलते समय भ्युली पुल के पास भीमकाली मंदिर